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Sonalika di 745 iii sikander: सोनालिका 745 डीआई III सिकंदर की कीमत और फीचर्स

Sonalika di 745 iii sikander: भारत में सोनालिका ट्रैक्टर का नाम अग्रणी ट्रैकरों में है। सोनालिका ट्रैक्टर की स्थापना 1969 ई. में हुई थी। यह भारत का स्वदेशी ट्रैक्टर है। आज सोनालिका ट्रैक्टर की बिक्री केवल भारत ही नहीं अपितु विश्वभर के सैकड़ों देशों में होती है। इसके शक्तिशाली इंजन और परफॉर्मेंस के कारण किसान इसे ज्यादा पसंदीदा ट्रैक्टर है। 

आज हम सोनालिका ट्रैक्टर कंपनी की 745 डीआई III सिकंदर मॉडल की कीमत और इसके मुख्य फीचर्स (Sonalika di 745 iii sikander price and features) के बारे में बता रहे हैं। 

यह ट्रैक्टर हल, कल्टीवेटर, रोटावेटर, वेटलैंड कल्टीवेशन, बुआई, थ्रेशर, आलू प्लांटर, ढुलाई, मल्चर, स्ट्रॉ रीपर, सुपर सीडर जैसे विभिन्न कृषि यंत्रों को बखूबी संचालित करता है। 

तो आइए, सबसे पहले सोनालिका 745 डीआई III सिकंदर ट्रैक्टर पर एक नज़र डाल लेते हैं। 

सोनालिका 745 डीआई III सिकंदर ट्रैक्टर पर एक नज़र

मॉडल 

745 डीआई III सिकंदर

एचपी श्रेणी

50 हार्सपावर

सिलेंडरों की संख्या

3

रेटेड आरपीएम 

1900

भार उठाने की क्षमता

2000 किलोग्राम

कल्च टाइप

सिंगल/डुअल

सोनालिका डीआई 745 III

6.95 - 7.32 लाख* रुपये

सोनालिका 745 डीआई III सिकंदर 50 एचपी का ट्रैक्टर है। यह 2 व्हील ड्राइव ट्रैक्टर है। इस ट्रैक्टर को कई उपकरणों के साथ जोड़कर चलाया जा सकता है। किसान इसे इसके आकर्षक लुक और डिजाइन के लिए पसंद करते हैं।

इंजन

इस ट्रैक्टर में 3 सिलेंडर और 50 एचपी का इंजन दिया गया है। इसका इंजन 1900 आरपीएम जनरेट करता है। इस ट्रैक्टर में वेट टाइप एयर फिल्टर दिया गया है, जो इंजन की सेहत को अच्छा रखता है। इस ट्रैक्टर की पीटीओ 40.8 एचपी है। ब्रेक और

स्टीयरिंग

इस ट्रैक्टर में आयल इम्मरसेड ब्रेक/ड्राई डिस्क ब्रेक दिए गए हैं। इसमें मैकेनिकल/पावर टाइप का स्टीयरिंग का विकल्प दिया गया है।

टैंक और गियर

इस ट्रैक्टर में 55 लीटर क्षमता का बड़ा ईंधन टैंक आता है। इसमें सिंगल स्पीड टाइप का पीटीओ भी दिया है, जो 540 आरपीएम उत्पन्न करता है। इसमें 8 फॉरवर्ड और 2 रिवर्स गियर दिए गए हैं।

हाइड्रोलिक्स

इस ट्रैक्टर की वजन उठाने की क्षमता 1800 किलोग्राम है।

पहिये और टायर

यह 2 व्हील ड्राइव ट्रैक्टर है। इसमें प्रभावी कार्य के लिए मल्टीपल ट्रेड पैटर्न वाले टायर दिए गए हैं। इस ट्रैक्टर के फ्रंट टायरों का साइज 6.0 x 16 / 6.5 x 16 / 7.5 x 16 और पीछे के टायर 14.9 x 28 / 13.6 x 28 साइज में हैं।

सोनालिका 745 डीआई III सिकंदर की कीमत

यह ट्रैक्टर बाजार में 6.95 से 7.32 लाख* रुपए के दाम में उपलब्ध है। सोनालिका 745 डीआई III सिकंदर की यह कीमत राज्यों के अनुसार अलग-अलग भी हो सकती है। अतः आप अपने क्षेत्र में इसकी कीमत जानने के लिए अपने नजदीकी डीलर्स से संपर्क करें।

ये तो थी, सोनालिका 745 डीआई III सिकंदर की कीमत और मुख्य फीचर्स (Sonalika di 745 iii sikander price and features) की जानकारी। ऐसे ही ट्रैक्टर या कृषि मशीनरी संबंधित जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।


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mehsana buffalo: मेहसाणा भैंस की कीमत और पहचान

mehsana buffalo: हमारे देश में पशुपालन सदियों से चला आ रहा है। जिसमें डेयरी व्यवसाय सबसे लोकप्रिय है। डेयरी में गाय और भैंस पालन करना पहला विकल्प माना जाता है। आजकल लोग डेयरी से जुड़े काम करके लाखों रुपए कमा रहे हैं। 


अगर आप गांव या शहर कहीं भी रहते हैं तो भैंस पालन करके भी अच्छे पैसे कमा सकते हैं। इसके लिए अच्छी नस्ल की भैंस का चयन करना सबसे जरूरी है। इनमें मेहसाणा भैंस (mehsana bhains) एक अच्छी नस्ल है।


तो आइए, द रूरल इंडिया के इस ब्लॉग में मेहसाणा भैंस से जुड़ी जरूरी बातें (mehsana buffalo identification and price) जानते हैं। 


मेहसाणा भैंस पर एक नज़र (mehsana buffalo facts)

नस्ल

मेहसाणा (mehsana bhains)

मूल स्थान

गुजरात का मेहसाणा जिला

पहचान

सींग घुमा हुआ होता है। शरीर से धाकड़ होती है।

रंग

काला और भूरा

दूध देने की क्षमता

प्रति ब्यात1200 से 1500 लीटर

वजन

लगभग 450 से 480 किलोग्राम


मेहसाणा भैंस का मूल स्थान और पालन क्षेत्र

मेहसाणा भैंस (mehsana bhains) की उत्पत्ति गुजरात का मेहसाणा जिला माना जाता है। इसलिए इस नस्ल का नाम मेहसाणा रखा गया है। इसके अलावा ये भैंस गुजरात के साबरकांठा, बनासकांठा, अहमदाबाद और गांधीनगर और महाराष्ट्र में पाई जाती है। अब यह भैंस उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य राज्यों में भी पाली जा रही है।


मेहसाणा भैंस की पहचान (mehsana buffalo identification)

  • मेहसाणा भैंस (mehsana bhains)  देखने में मुर्रा भैंसों की तरह ही होती है।

  • शरीर में मुर्रा भैंस की तरह भारी-भरकम होती है।

  • मेहसाणा भैंसों का रंग काला और भूरा दोनों ही हो सकता है।

  • मेहसाणा भैंसों की सिंह भी घूमी हुई होती है लेकिन मुर्रा भैंसों से कम।

  • मेहसाणा भैंस मुर्रा भैंस से वजन में हल्की होती है लेकिन दिखने में धाकड़ होती है।


मेहसाणा भैंस की विशेषता (mehsana buffalo)

  • यह भैंस कहीं भी आसानी से पाली जा सकती है।

  • यह भैंस प्रतिदिन 12 से 15 लीटर तक दूध देती है।

  • यह भैंस 3 से 4 साल में अपनी पहली ब्यात के लिए तैयार हो जाती है।


मेहसाणा भैंस का पालन कैसे करें

मेहसाणा भैंस (mehsana bhains) का पालन करना कोई झंझट की बात नहीं है। अगर किसान चाहे तो अपने खेत से निकलने वाले भूसा चारा और घास को खिलाकर भी बहुत आसानी से मेहसाणा भैंस को पाल सकते हैं। मेहसाणा भैंस को पालने में कोई खास मेहनत करने की जरूरत नहीं है। 

  • इसे आप चारागाह या डेयरी का चुनाव करें। 

  • इसके बाद चारा इत्यादि की व्यवस्था कर लें। 

  • डेयरी में पानी, बिजली, हवा की उचित व्यवस्था कर लें। 

  • किसी भी बीमारी होने पर पहले से ही डॉक्टर की जानकारी कर लें। 


मेहसाणा भैंस की कीमत और कमाई (mehsana buffalo price and income)

अधिक दूध देने की क्षमता के कारण इस भैंस की डिमांड ज्यादा होती है। आपको बता दें, मेहसाणा भैंस की कीमत लगभग 50 हजार से डेढ़ लाख रुपए तक मिलती है। यह कीमत भैंस की आयु और दूध देने की क्षमता पर भी निर्भर करता है। 


पशुपालकों के लिए मेहसाणा भैंस (mehsana buffalo) एक अच्छी नस्ल है। इससे पशुपाशकों को अच्छी कमाई हो जाती है। मेहसाणा भैंस को खरीदना आपके बजट के ऊपर निर्भर करता है। आप चाहे तो कम उम्र के मेहसाणा भैंस को लेकर पाल सकते हैं। दूध और इससे जुड़े उत्पाद जैसे- पनीर, घी, छाछ, मक्खन बेचकर हर माह लाखों रुपए की कमाई कर सकते हैं।


अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

प्रश्न- एक भैंस पालने में कितना खर्चा आता है?

उत्तर- एक भैंस की कीमत 50 हजार रुपए से लेकर 1.5 लाख रुपए तक होती है। इसके आलावा आपको भैंस पालन में प्रतिमाह चारा, आवास, दवाई इत्यादि पर 10 हजार रुपए तक खर्च हो सकता है। 

प्रश्न- मेहसाणा किसकी नस्ल है?

उत्तर- मेहसाणा भैंस (mehsana buffalo) गुजरात की नस्ल है। इसकी उत्पति गुजरात का मेहसाणा जिला माना जाता है। 

प्रश्न- मेहसाणा भैंस कितना दूध देती है?

उत्तर- मेहसाणा भैंस प्रतिदिन 12 से 15 लीटर तक दूध देती है।

प्रश्न- मेहसाणा भैंस की पहचान कैसे करें?

उत्तर- मेहसाणा भैंस की सिंह घूमी हुई होती है लेकिन मुर्रा भैंसों से कम होती है। मेहसाणा भैंस मुर्रा भैंस से वजन में हल्की होती है लेकिन दिखने में धाकड़ होती है।


पशुपालन से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी के लिए आज ही द रूरल इंडिया वेबसाइट विजिट करें। 


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आंवला की खेती की जानकारी | amla ki kheti

amla ki kheti: भारत में आंवला की खेती के लिए काफी फेमस है। हमारे देश में आंवले की खेती खूब होती है। आंवला उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। आंवले को आयुर्वेद में सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता है। आंवला औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसमें पाए जाने वाले कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस, विटामिन ए, विटामिन ई जैसे पोषक तत्व स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। 

कई तरह की बीमारियों में डॉक्टर्स द्वारा इसके सेवन की सलाह दी जाती है। बाजार में आवंले की अच्छी मांग रहती है। ऐसे में आंवला की खेती( amla ki kheti) से किसान अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। 

तो आइए, द रूरल इंडिया के इस ब्लॉग में जानें- आंवला की खेती कैसे करें

आंवला की खेती के लिए मिट्टी और जलवायु 

आंवला की खेती (amla ki kheti) के लिए समशितोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए 15 सेंटीग्रेट से 25 सेंटीग्रेट तापमान सबसे अच्छा होता है। आंवले की खेती (amla ki kheti) हर प्रकार की मिट्‌टी में की जा सकती है। लेकिन इसके लिए जलभराव वाली मिट्‌टी नहीं होनी चाहिए। आंवला की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 9.5 होना चाहिए। 

फसल अवधि 

आंवला की बागवानी लगाने के बाद फल लेने के लिए आपको 2-3 साल का इंतजार करना पड़ सकता है। आंवले की रोपाई के बाद उसका पौधा 4-5 साल में फल देने लगता है।

बुआई कब करें 

आंवला की खेती (amla ki kheti) जुलाई से सितंबर के महीने में की जाती है। इसके अलावा इसकी खेती जनवरी से फरवरी महीने में भी की जा सकती है।

आंवला की उन्नत किस्में 

नरेन्द्र- 10 (एन ए-10), बनारसी, नरेन्द्र- 7 (एन ए- 7), चकईया, फ्रान्सिस, कृष्णा (एन ए- 5), नरेन्द्र- 9 (एन ए- 9), कंचन (एन ए- 4) आदि। 

खेत की तैयारी

  • सबसे पहले इसकी खेती के लिए मई-जून के महीने में गड्ढे तैयार कर लें। 
  • गड्ढों की खुदाई 10 फीट x 10 फीट या 10 फीट x 15 फीट पर रखें। 
  • पौधा लगाने के लिए 1 घन मीटर आकर के गड्ढे खोद लें।
  • इसके बाद गड्‌ढों को 15 से 20 दिन के लिए खुला छोड़ दें। 
  • प्रत्येक गड्‌ढे में 20 किलो नीम की खली और 500 ग्राम ट्राइकोडर्मा मिला दें। 
  • गड्ढों को भरते समय 70 से 125 ग्राम क्लोरोपाईरीफास डस्ट भी भर दें। 
  • मई में इन गड्ढों में पानी भर दें।
  • वहीं गड्ढे भराई के 15 से 20 दिन बाद ही पौधे का रोपण कर दें। 

सिंचाई प्रबंधन

इसके पौधे को कम सिंचाई की जरूरत होती है। गर्मियों में नए स्थापित बागों में 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। फूल आने के समय (मध्य मार्च से मध्य अप्रैल तक) सिंचाई ना करें।

आंवला की खेती में कमाई और उत्पादन 

आंवले की रोपाई के बाद उसका पौधा 4-5 साल में फल देने लगता है। 8-9 साल के बाद एक पेड़ हर साल औसतन 1 क्विंटल फल देता है। बाजार में आंवले का फल प्रति किलो 15-20 रुपए में बिक जाता है। इसके एक पेड़ से हर साल 2500 से 4000 रुपए की कमाई कर सकते हैं।

ये तो थी, आंवला की खेती (amla ki kheti) की बात। ऐसे ही उन्नत खेती की जानकारी प्राप्त करने के लिए यहां क्लिक करें। 


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सफेदा की खेती

Safeda ki Kheti: सफेदा को नीलगिरी, यूकेलिप्टस भी कहा जाता है। इसका पौधा सबसे तेज बढ़ने के लिए जाना जाता है।  इसके पौधे 10-15 साल में तैयार होकर बेचने के लिए तैयार हो जाते हैं। यूकेलिप्टस के पेड़ 50-80 फीट तक होते हैं। 

सफेदा का उपयोग इमारती लकड़ी, तेल, कागज और औषधीय बनाने में किया जाता है। इसकी पत्तियों से तेल निकाला जाता है, जिसका इस्तेमाल गले, नाक, पेट आदि की बीमारियों के इलाज में होता है। इससे कई तरह की औषधियां भी बनाई जा सकती हैं। 

तो आइए, इस ब्लॉग में यूकेलिप्टस की खेती (Safeda ki Kheti) के बारे जानें।  

इन क्षेत्रों में होती है खेती

भारत में यूकेलिप्टस की खेती (Eucalyptus ki kheti) आंध्रप्रदेश, बिहार, गोआ, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में की जाती है।

बुवाई का समय

यूकेलिप्टस की खेती (Eucalyptus ki kheti) के लिए सबसे उपयुक्त समय जून से अगस्त का होता है। इसकी बागवानी करने के लिए जून के महीने में गढ्ढे तैयार कर लें और जुलाई या पहली बारिश के पहले पौधों की रोपाई कर दें। 

बीज की मात्रा

यूकेलिप्टस की खेती (Eucalyptus ki kheti) के लिए प्रति एकड़ करीब 350 पौधों की जरूरत होती है। यदि आप सघन खेती करना चाहते हैं तो प्रति एकड़ 480 पौधों की रोपाई कर सकते हैं। 

फसल अवधि

जैसा कि आप जानते हैं इसके पौधे बड़ी तेजी से बढ़ते हैं। इसके पेड़ 10 साल में बिक्री के लिए तैयार हो जाते हैं।

खेत की तैयारी

  • सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करके सभी खरपतवारों को निकाल लें।
  • सामान्य हल से जुताई करके खेत को समतल बना लें।
  • पौध रोपण से करीब 20 दिन पहले खेत में एक फीट चौड़ा और गेहर गड्ढडा बना लेना चाहिए।

बुवाई कैसे करें?

  • पहले से तैयार पौधों की रोपाई खेत में की जाती है।
  • पौधे से पौधे की दूरी करीब 3 फीट रखी जाती है।

सिंचाई

  • यदि रोपाई के समय पर्याप्त बारिश नहीं हुई है, तो सिंचाई करें।
  • यह फसल सूखे को आसानी से सहन कर लेती है।
  • अच्छी उपज के लिए विकास के दौरान सिंचाई की जाती है।

उपज और लाभ

  • इससे प्रति पेड़ 5 साल में करीब 400 किलो लकड़ी प्राप्त होती है।
  • यूकेलिप्टस से आप प्रति एकड़ 50 लाख रुपए की कमाई कर सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न- यूकेलिप्टस का पेड़ कितने दिन में तैयार होता है?

उत्तर- यूकेलिप्टस का पेड़ 5 से 10 वर्ष में तैयार हो जाते हैं। 

प्रश्न- सफेदा का पेड़ कितने साल में तैयार होता है?

उत्तर- सफेदा का पेड़ 10 साल में तैयार हो जाता है।

प्रश्न- यूकेलिप्टस के पेड़ की कीमत क्या है?

उत्तर- यूकेलिप्टस के पेड़ की कीमत 10 हजार रुपए तक होती है। हालांकि यह कीमत पेड़ की मोटाई और बाजार भाव पर भी निर्भर करता है। 

प्रश्न- यूकेलिप्टस 1 दिन में कितना पानी पीता है?

उत्तर- यूकेलिप्टस एक दिन 15-20 लीटर तक पानी पीता है। 

ये तो थी, यूकेलिप्टस की खेती (Safeda ki Kheti) की जानकारी। ऐसे ही खेती-किसानी और कृषि मशीनरी की जानकारी के लिए द रूरल इंडिया वेबसाइट विजिट करें। 


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kela ki kheti

kela ki kheti: केला एक बहुत ही पौष्टिक फल है। केले में शर्करा खनिज लवण फास्फोरस आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। केला में आयरन की मात्रा बहुत अधिक होती है, जो शारीरिक दुर्बलता दूर करने में काफी मददगार होती है। केले में पाए जाने वाले कार्बोहाइड्रेट, आयरन, फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक, सोडियम, पोटेशियम, विटामिन-A, C और B-6, शरीर को भरपूर पोषण देते हैं। 

केला की खेती (kela ki kheti) किसानों के लिए एक बेहतर व्यवसाय है। नकदी फसल होने के कारण किसानों को बाजार में इसका बेहतर दाम मिलता है। 

kela ki kheti: केला की खेती की संपूर्ण जानकारी

तो आइए, द रूरल इंडिया के इस ब्लॉग में केला की खेती (kela ki kheti) की बारे में विस्तार से जानते हैं। 

केला की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु

केला की खेती (kela ki kheti) के लिए गर्म जलवायु अच्छी होती है। 15 से 30 डिग्री सेल्सियस का तापमान केले की पैदावार के लिए काफी अच्छा होता है। भारत में इसके लिए दक्षिण राज्यों की जलवायु काफी अनुकूल है। यही कारण है कि सबसे अधिक केला की खेती (kela ki kheti) दक्षिण भारत में होती है। 

केला की खेती के लिए जीवांश युक्त दोमट मिट्टी और बलुई मिट्टी सबसे उपयुक्त होती  है। इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 के बीच होनी चाहिए। 

खेत की तैयारी 

  • सबसे पहले खेत की 3 से 4 बार गहरी जुताई करें।
  • आखिरी जुताई के समय मिट्टी में गोबर खाद मिला लें। 
  • इसके बाद लेवलर और हैरो ब्लेड की मदद से मिट्टी को बराबर करें।

केला की उन्नत किस्में

हमारे देश में लगभग 20 से ज्यादा किस्म के केले की खेती की जाती है।

  • G-9 (सबसे अधिक पसंद किए जाने वाले किस्मों में एक है)
  • ड्वार्फ कैवेंडिश (Dwarf Cavendish)
  • रॉबस्टा(Robusta)
  • रेड बनाना (Red banana)
  • मोनथन (Monthan) 
  • पूवन (Poovan)
  • न्याली (Nyali) 
  • सफेद वेलची (Safed velchi)
  • बसाराई (basarai) 
  • अर्धपुरी (Ardhapuri)
  •  रसथली (Rasthali)
  • कर्पूरवल्ली (karpuravalli) 
  • ग्रैंड नैन (Grand naine)

पौधे लगाने का तरीका

  • गड्ढे की लम्बाई, चौड़ाई और गहराई लगभग 60x 60x 60 सेंटीमीटर रखें।
  • पौधों और कतार की  दूरी लगभग 1.5x 1.5 मीटर रखें
  • ज्यादा गहराई में पौधे की रोपाई ना करें।
  • संक्रमण रहित पौधों का चुनाव करें
  • रोपाई से पहले पौधे की जड़ों को अच्छी तरह धोएं।

सिंचाई प्रबंधन

केला एक गर्म पौधा है। केले की खेती (kela ki kheti) के लिए पानी की आवश्यकता अधिक होती है। सर्दी के दिनों में लगभग केले के खेतों में 7 से 8 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। वहीं गर्मी के दिनों में 4 से 5 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।

उर्वरक एवं खरपतवार नियंत्रण

  • गोबर खाद के साथ-साथ रोपाई से पहले जड़ों को क्लोरपाइरीफॉस 20 ईसी  2.5 पानी में 6 घंटे तक दबाकर रखें उसके बाद रोपाई करें।
  • यूरिया और म्यूरेट ऑफ पोटाश 350 ग्राम (म्यूरेट ऑफ पोटाश) को 5 भागों में बांटकर डालें।
  • रोपाई से पहले जोताई करके खरपतवार को निकाल दें। 
  • इसके बाद बीज के अंकुरण से पहले ड्यूरॉन डब्ल्यू पी को पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

कीट एवं रोकथाम

पत्ती विटिल- यह किट ताजे पत्तों और फूलों को खाता है। इसके रोकथाम के  लिए लिएइन्ड़ोसल्फान 2 मि.ली. और कार्वरिल 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर पहला छिड़काव फूल आने के तुरन्त बाद और दूसरा 15-20 दिन बाद करना चाहिए।

बनाना विविल (घुन)- केले में  बरसात के दिनों में  यह  कीट लगता है। तने में छेद बनाकर मादा विविल(घुन) अंडे देती है। इनसे सुंडियां निकलकर तने में छेद करके खाती हैं। जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं। इससे बचाव के लिए समय-समय पर फास्फेमिडान घोल का छिड़काव करें।

तना गलन (सूडोहर्ट राट)- यह रोग फफूंदी के कारण होता है। इसके प्रकोप से निकलने वाली नई पत्ती काली पड़कर सड़ने लगती है। इसके रोकथाम के लिए डाइथेन एम.- 45 के बावेस्टीन के पानी में मिलाकर 2-3  बार छिड़काव करना चाहिए।

पनामा बिल्ट- इस के प्रकोप से पत्तियां पीली होकर नीचे की ओर झुक जाती है। रोकथाम के लिए बावेस्टीन का गोल बनाकर पौधों के चारों तरफ डालना चाहिए।

लीफ स्पाट- इस रोग में पत्तियों पर पीले भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। पौधे की वृद्धि रुक जाती है। इससे बचाव के लिए डाईथेन एम-45 के  और कापर आक्सीक्लोराइड का छिड़काव 10-15 दिन  में एक बार करना चाहिए। इसके अलावा अपने पौधों को किसी कीट रोग से बचाने के लिए समय-समय पर एक्सपर्ट की सलाह लेते रहें।

केला की खेती में लागत और कमाई

केले की खेती (kela ki kheti) में अगर लागत और कमाई की बात करें तो लगभग एक हेक्टेयर जमीन में केले की खेती करने के लिए लगभग डेढ़ लाख तक की लागत आती है। वहीं बात अगर मुनाफे की की जाए तो एक हेक्टेयर की पैदावार लगभग 3 से साढ़े तीन लाख रुपए की कमाई हो जाती है। इस तरह से केले की खेती करने वाले किसान को लगभग एक से डेढ़ साल में डेढ़ से दो लाख तक का मुनाफा हो सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न- केला लगाने का सही समय क्या है?
उत्तर- केला गर्म जलवायु का पौधा है। इसकी खेती का सही समय जून से लेकर अगस्त का महीना होता है।
प्रश्न- 1 केले का पेड़ कितनी बार फल देता है?
उत्तर- एक केले का पेड़ एक बार में एक बार ही फल देता है।
प्रश्न- केले का पेड़ कितने महीने में फल देता है?
उत्तर- केले का पेड़ 10 से 12 महीने में फल देता है।
प्रश्न- 1 एकड़ में कितने केले के पौधे लगते हैं?
उत्तर- एक एकड़ में 1000 से 1200 पौधे लगते हैं।

ये तो थी, केला की खेती (kela ki kheti) की जानकारी। ऐसे ही खेती की उन्नत जानकारी के लिए द रूरल इंडिया वेबसाइट को विजिट करें।


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Pangasius machli palan: पंगेसियस (पंगास) मछली पालन की संपूर्ण जानकारी

Pangasius machli palan: मछली प्रोटीन का बहुत ही सस्ता और समृद्ध स्रोत है। मछली पालन में भारत अग्रणी देश है। मछली उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। हमारे देश में कई प्रजातियों की मछलियां पाई जाती हैं। इन मछलियों में पंगेसियस (पंगास) मछली एक प्रमुख प्रजाति है। जिसका पालन हमारे देश में बहुतायत मात्रा में किया जाता है। इस प्रजाति की मछली से किसानों को लागत में अच्छा मुनाफा मिलता है। 

तो आइए, इस ब्लॉग में पंगेसियस (पंगास) मछली पालन (Pangasius machli palan) के बारे में जानते हैं।

सबसे पहले पंगेसियस (पंगास) मछली पालन पर एक नज़र डाल लेते हैं। 

पंगेसियस (पंगास) मछली पर एक नज़र

  • पंगास मछली दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी प्रजाति है।
  • पंगेसियस (पंगास) एक कैटफ़िश है जो मीठे पानी में पाली जाती है। 
  • इस मछली का शरीर शल्क रहित होता है, सिर छोटा और मुंह बड़ा होता है।
  • इसके शरीर पर काली लकीरें होती है और आंखें बड़ी होती है।
  • इस प्रजाति की मछलियों की दो जोड़ी मूंछे होती है।
  • ये मछलियां 6 से 8 माह में 1.5 से 2 किलोग्राम तक हो जाती है।
  • इस प्रजाति में रोग निरोधक क्षमता अन्य मछलियों से अधिक होती है
  • हमारे देश में आंध्रप्रदेश पंगेसियस मछली का प्रमुख उत्पादक देश है। 
Pangasius machli palan: पंगेसियस (पंगास) मछली पालन

ऐसे करें पंगास मछली पालन के लिए तालाब का निर्माण

  • पंगेसियस (पंगास) मछली पालन (Pangasius machli palan) के लिए आयाताकार तालाब का निर्माण करें।
  • तालाब की लंबाई 100 फीट से लेकर 150 फीट तक रख सकते हैं। 
  • तालाब की गहराई 5 से कम नहीं होनी चाहिए। 
  • तालाब के पानी का तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए। 
  • पानी का पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच ही रहना चाहिए और अमोनिया 0.5 पीपीएम से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
  • ऑक्सीजन 5 पीपीएम से कम नहीं होना चाहिए। एक हेक्टेयर तालाब में लगभग 1 हजार किलोग्राम गोबर की खाद डालें।
  • इसके अलावा तालाब में 4 किलोग्राम यूरिया, 4 किलोग्राम पोटाश और 6 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट हर तीन माह में तालाब के अंदर डालें। 

पंगेसियस (पंगास) मछली की फीड

पंगास (Pangasius machli) मछली सर्वभक्षी होती है। काई और घेंघा खाकर भी अपना पेट भर लेती है। अतः तालाब में काई और घेंघा की व्यवस्था करनी चाहिए। इसके अलावा तेजी से वृद्धि के लिए पूरक आहार की जरूरत होती है। पूरक आहार के रूप में फैक्ट्री फार्मूलेटेड फ्लोटिंग फीड सबसे अच्छा होता है। पूरक आहार के लिए हमेशा अच्छी क्वालिटी का ही आहार खरीदें।

पंगेसियस (पंगास) मछली में लागत और कमाई

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि मछली पालन (machli palan) के लिए तालाब की जरूरत होती है। तालाब के अलावा किसान को पानी और आहार पर खर्च करना पड़ता है। एक हेक्टेयर पंगास मछली पालन (Pangasius machli palan) में तालाब का खर्च छोड़कर 50 हजार से 1 लाख का खर्च आता है। जबकि इस लागत में किसानों को 2 लाख तक की आमदनी हो जाती है। 

आपको बता दें, बाजार में भी पंगास मछली की बड़ी डिमांड रहती है। इसलिए पंगास मछली पालने से अच्छी-खासी कमाई हो जाती है। 

मछली पालन के लिए सरकारी मदद और अनुदान

केंद्र और राज्य सरकारें भी मछली पालन (machli palan) को बढ़ावा दे रही है। आपको बता दें, सरकार द्वारा मत्स्य पालन को आय और रोजगार उत्पन्न करने वाले क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई है। मछली पालन को बढ़ावा और सरकारी मदद प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) योजना लॉन्च की गई है। इसके साथ मछुआरों को ट्रेनिंग से लेकर उनके कल्याण के लिए कई योजनाएं लॉन्च की हैं। इसके लिए आप उद्यान या कृषि विभाग से संपर्क कर सकते हैं। 

ये तो थी, पंगेसियस (पंगास) मछली पालन (Pangasius machli palan) की जानकारी। ऐसे ही कृषि, ग्रामीण विकास की जानकारी के लिए हमारा ब्लॉग पढ़ते रहें।


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पपीता की खेती

papita ki kheti: पपीता औषधीय गुणों से भरपूर फल है। शायद ही ऐसा कोई हो जिसे पपीता खाना पसंद ना हो। पपीता का उपयोग फल और सब्जी दोनों रूपों में होता है। पपीता में विटामिन और खनिज-लवण भरपूर मात्रा में पाया जाता है। पपीता की खेती (Papita ki kheti) भारत के अधिकांश राज्यों में की जाती है। 

यदि आप भी खेती से जुड़कर ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते हैं तो पपीता की खेती (papita ki kheti) आपके लिए बेहतर ऑप्शन है। 

पपीता की खेती पूरी जानकारी

तो आइए, द रूरल इंडिया के इस ब्लॉग पपीता की खेती (papita ki kheti) के बारे में विस्तार से जानते हैं। 

पपीता की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु

पपीता की खेती (Papaya farming) के लिए हल्की दोमट मिट्टी सबसे बेहतर मानी जाती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 तक होना चाहिए। इसके अलावा पपीता को कम पानी वाली जगह में लाल पीली और काली मिट्टी में भी उगाया जा सकता है।

पपीता की खेती (papita ki kheti) के लिए गर्म और नमीयुक्त जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। पपीता की खेती के लिए फरवरी-मार्च और अक्टूबर के मध्य का समय सबसे अच्छा होता है। 

खेत की तैयारी

पपीता की खेती करने के लिए सबसे पहले खेत को अच्छी तरह जोत लें। जिससे मिट्टी अच्छी तरह समतल हो जाए। इसके बाद पपीते के बीज को दवाइयों में कुछ घंटे भिगोकर रखें। उसके बाद समान दूरी पर बीज को बोयें।

पपीता की उन्नत किस्में

वैसे तो पपीता के कई प्रकार हैं। लेकिन संकर किस्मों के पपीते की खेती (papita ki kheti) हमारे देश अधिक होती है। इसके अलावा पपीता की अन्य प्रजातियां निम्नलिखित है।-

  • पूसा 
  • ताइवान
  • डोलसियरा
  • पूसा मेजेस्टी
  • रेड लेडी-786
  • सोलो
  • सिलोन
  • कयोम्बटूर-4
  • वाशिंगटन

सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन

पपीता की खेती (papita ki kheti) के लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है। जमीन में नमी बरकरार रखने के लिए समय-समय पर सिंचाई करना आवश्यक होता है। अगर आप पपीता की खेती सर्दी में करते हैं तो लगभग 12 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। यदि गर्मी में करते हैं तो लगभग 5 से 8 दिन के अंतराल पर सिंचाई का काम करना चाहिए। इससे फल अच्छे आते हैं।

पपीता में लगने वाले रोग और रोकथाम

अधिकांश पपीता में कोई रोग या कीड़े नहीं लगते हैं। पपीता के पौधों को नुकसान सिर्फ लो या पाला से पहुंचता है। इसके लिए समय-समय पर पुआल या पेड़ के पत्ते इकट्ठा करके जलाकर धुआं कर देना चाहिए। इससे हानिकारक वायरस मर जाते हैं। कभी यदि पेड़ पेड़ मुरझाने लगे तो पौधों में पोटाश, नाइट्रोजन और फास्फोरस का छिड़काव करें, इससे फसल अच्छी होती है।

पपीता की खेती में लागत और कमाई

सामान्य तौर पर पपीते का एक स्वास्थ्य पौधा 40-50 किलो पपीते देता है। अगर किसान अच्छे पपीते की फसल लगाते हैं तो प्रति हेक्टेयर जमीन से साल में लगभग 6 से 8 लाख रूपये तक का मुनाफा कमा सकते हैं। बाजार में एक किलो पपीते की कीमत 10 रूपये से 40 रुपए तक होती है। इस हिसाब से एक क्विंटल पर 1000-4000 रूपये तक मिल सकता है। अगर किसान मेहनत और लगन से पपीते की खेती (papita ki kheti) करते हैं तो प्रति हेक्टेयर 2 से 3 लाख तक का मुनाफा कमा सकते हैं।

ये तो थी, पपीता की खेती (papita ki kheti) की जानकारी। ऐसे ही खेती की उन्नत जानकारी के लिए द रूरल इंडिया वेबसाइट को विजिट करें।